!! विजेथुआ धाम का बड़का मंगल मेला आज
!! बिजेथुआ महावीरन सुप्रसिद्घ ऐतिहासिक एंव पौराणिक धर्मस्थली है
!! नाग पंचमी के बाद पड़ने वाले पहले मंगलवार को विजेथुआ महावीरन धाम में बड़का मंगल मेला
सूरापुर।शीलेश बरनवाल
तहलका 24 x 7
सूरापुर कस्बे से दो किमी दक्षिण बिजेथुआ महावीरन सुप्रसिद्घ ऐतिहासिक एंव पौराणिक धर्मस्थली है।कालिनेमि वध स्थली यह पर्यटन केंद्र तीर्थ स्थल तीन तीर्थों के मध्य में है।यहां से प्रयाग,काशी व अयोध्या की समान दूरी है। मंदिर परिसर में आज भी 1889 अंकित (चीना) घंटा लोगों के आकर्षण का केंद्र है। मान्यता है कि यहां मत्था टेकने वालों की मुरादें जरूर पूरी होती हैं। नाग पंचमी के बाद पड़ने वाले पहले मंगलवार को विजेथुआ महावीरन धाम में बड़का मंगल मेला के रूप में मनाया जाता है।
कालिनेमि का उल्लेख रामचरित मानस के लंका काण्ड अध्यात्म रामायण के युद्ध काण्ड का सर्ग छह व सात में तथा आनन्द रामायण के सर्ग एक व 11 में मिलता है। गोस्वामी तुलसी दास ने राम चरित्रमानस के लंका काण्ड के दोहा संख्या 55 से 58 तक में कालिनेमि का वर्णन किया है। लक्ष्मण जब मेघनाथ द्वारा मारे गए शक्तिबाण से मुर्छित हो जाते हैं। तो हनुमान जी सुषेन वैध की सलाह पर धौलागिरी की ओर संजीवनी बूटी लाने के लिए प्रस्थान करते हैं। रावण द्वारा भेजा गया मुनि वेशधारी कालिनेमि राक्षस हनुमानजी का मार्ग अवरुद्ध करता है। कालिनेमि रचित सरोवर आश्रम को देख हनुमान जी की जल पीने की इच्छा हुई। हनुमान जी के सरोवर में प्रवेश करते ही अभिशापित अप्सरा मकरी के रूप में उनका पैर पकड़ ली।मकड़ी ने कालिनेमि का रहस्य बताते हुए हनुमान जी से कहा कि ''मुनि न होई यह निशिचर घोरा। मानहुं सत्य बचन कपि मोरा।।'' ऐसा कहकर मकड़ी लुप्त हो गई।
ज्ञातव्य हो कि गोस्वामी जी ने कालिनेमि के आश्रम के विषय में नाम निर्देश तो नहीं किया है। परन्तु परम्परागत जनश्रुति यही है कि बिजेथुआ महावीर ही वह पौराणिक स्थल है जिसका सम्बंध कालिनेमि,हनुमान जी व मकड़ी से है। सम्प्रति यहां मकड़ी कुण्ड सरोवर हनुमान जी का भव्य मंदिर तथा उसमें दक्षिणाभिमुख प्रतिमा प्राचीन काल से अवस्थित है। शक्ति पीठ विजेथुआ महावीरन धाम में समय- समय पर अनेक संतो ने घोर तपस्या की। मकड़ी कुण्ड के पूरब टीले पर बाबा निर्मल दास, हरिदास,चेतन दास, जोगी दास,युक्त दास आदि की समांधियां विराजमान हैं।
क्षेत्र के बुजुर्ग बताते हैं हनुमान जी की मूर्ति स्वंयभू प्रतिमा है तत्कालीन जमींदार के सहयोग से मूर्ति निकालने का कार्य शुरू हुआ कई दिनों की खुदाई के बाद भी जब मूर्ति की गहराई का पता नहीं चला तो भक्तों ने खुदाई का कार्य बन्द कर दिया। इस कारण यहां स्थापित हनुमान जी की प्रतिमा का एक पैर कितनी गहराई में है इसका आज भी पता नहीं है।
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